सहअस्तित्व की भावना ही सामाजिक समरसता हिमाचल एक पहाड़ी प्रदेश है। देवभूमि के नाम से विख्यात यह प्रदेश अपनी समृद्ध धार्मिक-सांस्कृतिक परम्पराओं के लिए देश दुनिया में जाना जाता है। देव संस्कृति आधारित समाज जीवन व्यवस्था यहाँ के लोक जीवन की धुरी है। यहां की लोक-संस्कृति और मान्यताओं में सामाजिक सद्भावना के दर्शन होते हैं। आध्यात्मिक ज्ञान के केंद्र स्वरूप देवालयों का सांस्कृतिक परम्पराओं के संचालन में भूमिका रहती है। पहाड़ी सांस्कृतिक जीवन मे रिषि-मुनि, वीर, अवतार, ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि इस देवभूमि को आलोकित करने वाले प्रकृति सृष्टि की रचनाकार लौकिक और अलौकिक शक्तियों के प्रतीकों को समर्पित स्थापित देवालय स्थान-स्थान पर हैं। समाज के विभिन्न घटक वे चाहे जिस भी वर्ण, मत, पंथ जाति व वर्ग विशेष से हों, का देव संस्कृति में स्थापित परम्पराओं के निर्वहन में योगदान रहता है। देव आज्ञा से सम्पूर्ण समाज एक साथ चलता है। गुलाम और पढ़े-लिखे समाज की विकृत मानसिकता के कारण कई बार समरस समाज कल्पना के भाव में अभाव दिखता है। देव संस्कृति की ओर दृष्टि पात करने पर कर्मणा व्यवस्था में तो सामंजस्य दिखता है लेकिन इसके उदार और व्यवहारिक स्वरूप की आज भी दरकार है। जोगिन्द्र ठाकुर, कुल्लू (हि. प्र.)