लोकगाथाओं में स्थित इतिहास को इतिहासकार भी नहीं बदल सकते – प्रेम कुमार धूमल हमीरपुर । ठाकुर जगदेव चन्द स्मृति शोध संस्थान नेरी में ‘इतिहास लेखन में लोकगाथाओं का योगदान’ पर चल रहा त्रिदिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद रविवार 04 अक्तूबर को समाप्त हो गय। इस अवसर पर नेता विपक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की। धूमल ने कहा कि स्वर्गीय ठाकुर राम सिंह ने ठाकुर जगदेव चन्द स्मृति शोध संस्थान नेरी के माध्यम से हिमाचल में एक बहुत बड़े शोध संस्थान की विरासत खड़ी की है। यह संस्थान भारतीय इतिहास के प्रमाणिक स्रोतों का प्रयोग करके निष्पक्ष लेखन कार्य करे, ऐसी आशा की जानी चाहिए। धूमल ने कहा कि हिमाचल प्रदेश हिमालय के आंचल में बसा होने के कारण देश के आधारभूत इतिहास का सबसे बड़ा स्थल है और इसी से इतिहास लेखन की नई दिशाएं निकल सकती हैं। हमारे देश के इतिहास के साथ खिलवाड़ हुआ है। जो राष्ट्र अपने देश के सही इतिहास की जानकारी नहीं रख पाते, उन राष्ट्रों का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। कुछ इतिहाकारों ने इतिहास के पन्नों को बदलने की कोशिश की है, लेकिन जो इतिहास लोकगाथाओं के माध्यम से है, उसे ऐसे इतिहासकार कभी नहीं बदल सकते। धूमल ने कहा कि अब डीएनए के माध्यम से भी यह साबित हो चुका है कि आर्य इसी देश के मूल निवासी थे। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ। कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कहा कि देश में इतिहासकारों के दो समूह बन गए हैं। ये दोनों समूह ब्रिटिश शासन को तो विदेशी मानते हैं, लेकिन तुर्कों, अरबों, ईरानियों, अफगानों और मुगलों के शासन को विदेशी मानने से इंकार करते हैं। इसलिए भारतीय इतिहास को लेकर भ्रम पैदा होता है। जो इतिहासकार अरबों से लेकर मुगलों तक के शासन को विदेशी नहीं मानते, वे जानबूझ कर तथ्यों को तोड़मरोड़ कर इन शासकों को लोक कल्याणकारी सिद्ध करने में जुटे हैं। लेकिन इस काल की लोकगाथाओं को खंगाला जाए तो उनके इस झूठ का पर्दाफाश हो जाता है। कार्यक्रम के अध्यक्ष पंजाब सरकार में पूर्व मंत्री डॉ। बलदेव चावला ने कहा कि हमारे इतिहास में यह बताया जाता है कि आर्य विदेशों से आकर भारत में बसे जो बिल्कुल गलत है। वहीं इतिहास में सिकंदर महान का वर्णन किया जाता है, जबकि तथ्य इसके विपरीत है क्योंकि पोरस ने यहां पर सिकंदर को हराया था। इसी तरह आजादी की पहली लड़ाई जो अंग्रेजों के साथ 1857 में लड़ी गई उसे भी गलत तरीके से पेश किया जाता है। तीन दिनों तक चले इस परिसंवाद में देशभर से 88 विद्वानों ने भाग लिया, जिसमें 63 शोध पत्र पेश किए गए। समापन समारोह के दौरान मुख्य अतिथि प्रो प्रेम कुमार धूमल ने 63 शोध पत्र प्रस्तुत करने वाले शोधार्थियों को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया। इस अवसर पर कांगड़ा के युवा इतिहासकार विवेक शर्मा को ठाकुर रामसिंह युवा इतिहासकार पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। उन्हें यह सम्मान कांगड़ी लोकपरंपरा में रामायण के इतिहास पर प्रदान किया गया।