सबल समाज सब को साथ लेकर चलता है – सुरेश भय्या जी जोशी श्रद्धेय भाऊ साहेब भुस्कुटे स्मृति व्याख्यानमाला टिमरनी मध्यभारत (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्या जी जोशी ने कहा कि प.पू. बाला साहेब देवरस (तृतीय सरसंघचालक) का जीवन संघ का इतिहास है. उनके जीवन में संघ के अलावा और कुछ नहीं था. संघ कार्य को गति और दिशा देने वाले लोगों में उनका विशेष स्थान है. उनके जीवन का प्रारंभ देशभक्ति से और समापन आत्म यज्ञ से हुआ. राष्ट्र के सिवाय उनका कोई देव नहीं और संघ के सिवा किसी और बात में रस नहीं, ऐसे वे देवरस थे. सरकार्यवाह जी भाऊ साहेब भुस्कुटे स्मृति व्याख्यानमाला के रजत जयंती समारोह में उपस्थितजनों को संबोधित कर रहे थे. व्याख्यानमाला के तीसरे दिन कार्यक्रम की अध्यक्षता सह प्रांत संघचालक अशोक पाण्डे जी ने की, तथा मुख्य वक्ता सरकार्यवाह सुरेश भय्या जी जोशी थे. कार्यक्रम का संचालन विक्रम भुस्कुटे द्वारा किया गया. सौ. गीता गद्रे द्वारा गीत प्रस्तुत किया गया.सरकार्यवाह जी ने बताया कि उन्हें (बाला साहेब देवरस जी) न केवल गीता कंठस्थ थी, बल्कि मेघदूत भी कंठस्थ था. उनकी स्मरण शक्ति विलक्ष्ण थी. युद्ध शास्त्र का उन्हें विशेष अध्ययन था. वे संस्कृत और अंग्रेजी के ज्ञाता थे. उनका वक्तृत्व ओजस्वी नहीं था, पर भाषा और वाणी में प्रगल्भता और गंभीरता थी. व्यवहार में अत्यंत सहज, गंभीर एवं मितभाषी थे. वे बातचीत के द्वारा किसी को भी अपना बना लेते थे. वे कुशल संगठन शिल्पी थे. श्री गुरुजी के व्यक्तित्व का दर्शन उनके व्यक्तित्व में होता था. संघ के कार्यक्रमों की रचना एवं चिंतन में उनकी बड़ी भूमिका थी. एक साथ मिलकर गीत गाने की परंपरा पूज्य बाला साहेब जी की ही देन है. श्री गुरुजी कहते थे कि जिन्होंने डॉक्टर साहेब जी को नहीं देखा, वे बाला साहेब जी को देख लें. वे मानते थे कि सामाजिक जीवन में कठोरता नहीं लचीलापन चाहिए. शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है. उनका जीवन तत्वनिष्ठ और ध्येयनिष्ठ था. शाखा व्यक्तित्व विकास का केन्द्र है. जब तक व्यक्ति के जीवन से दोष दूर नहीं होंगे, तब तक देश से भी दोष नहीं जाएंगें. समाज शक्तिशाली और सामर्थ्यवान होना चाहिए, जिनका लक्ष्य बड़ा होता है उनमें सहनशीलता आवश्यक है. गुणों का गुणा, अनुभवों का जोड़ और दोषों को घटना होगा. निर्दोष समाज का निर्माण संघ का लक्ष्य है, मतांतरण के लिये अपना समाज भी दोषी है. भेदभाव, छुआछूत और सामाजिक समरसता के संदर्भ में पू. बाला साहेब ने कहा था कि यदि अस्पृश्यता पाप नहीं है तो कुछ भी पाप नहीं है. प्राणी मात्र में ईश्वर का अंश है तो फिर जाति के कारण भेदभाव क्यों. वे कहते थे कि तुष्टीकरण की बात दुर्बल समाज करता है, सबल समाज सब को साथ लेकर चलता है. भारत में यदि लोकतंत्र, समाजवाद और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है तो इस कारण हिन्दुओं का बहुसंख्यक होना है. व्याख्यानमाला में अंतिम दिन सैकड़ों की संख्या में श्रोता उपस्थित थे. कार्यक्रम का समापन वन्देमातरम् के साथ हुआ.